Sarkaar se Puche Sanjay Singh ne Savaal

आम आदमी पार्टी (AAP) के सांसद Sanjay Singh ने हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में gujarat sarkaar aur Adani ग्रुप के बीच हुए एक विवाद को लेकर महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं। उनके आरोपों के अनुसार, 2007 में गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने अडानी ग्रुप के साथ बिजली व्यवसाय पर समझौता किया था। यह समझौता उनके अनुसार गुजरात की जनता के लिए नुकसानकारक हो सकता है।

Sanjay Singh के मुताबिक, gujarat sarkaar aur Adani ने 2007 में पावर परचेज एग्रीमेंट किया था। उसके बाद 2018 में अडानी और गुजराती सरकार ने एक और समझौता किया, जिसमे स्पष्ट तौर पे कहा गया है कि कोयला ऊंची कीमत पर खरीदना होगा। इसलिए सरकार के लिए बिजली की लागत बढ़ जाएगी. हालाँकि, अनुबंध में यह निर्धारित किया गया था कि भुगतान विभिन्न देशों में आर्गस ग्लोबल कंपनी द्वारा उद्धृत कोयले की कीमतों के अनुसार प्रदान किया जाएगा। आर्गस ग्लोबल कंपनी वैश्विक कोयले की कीमतों पर जानकारी प्रदान करती है।

Sanjay Singh ने अडानी ग्रुप को लेके कुछ सवाल किए

Sanjay Singh ने बताया कि इस समझौते के अनुसार अडानी ग्रुप ने गुजरात की जनता को अगले 25 साल तक प्रति यूनिट 2.25 रुपए की बिजली देने का वादा किया था। हालांकि, उनके द्वारा उठाए गए सवाल और विवाद से सिर्फ बिजली के दामों के बारे में ही नहीं है, बल्कि यह सवाल भी उठता है कि वह दाम कितने उचित और समर्थनीय हैं।

राज्यसभा सदस्य ने अपने आरोप में कहा कि 2018 से 2023 तक अडानी ने कोयले का दाम जितना बताया है, गुजरात सरकार उतनी पेमेंट करती रही। गुजरात सरकार ने इस दौरान अडानी की कंपनी को 13802 करोड़ रुपए का भुगतान किया। हैरानी की बात है कि गुजरात मॉडल की बात करने वाली गुजरात सरकार ने आर्गस ग्लोबल कंपनी के रेट से सत्यापन नहीं किया कि उस वक्त इंडोनेशिया में कोयले का क्या रेट था? गुजरात सरकार ने कोई जांच नहीं की।

अडानी ने जितना बिल बनाकर दिया, सरकार ने उतना भुगतान कर दिया। एक सवाल यह भी उठा रहा है कि जब भारत में जरूरत से अधिक कोयले का उत्पादन किया जाता है तो अडानी को विदेश से कोयला खरीदने की जरूरत क्यों पड़ी? पिछले साल भारत में कोयले का उत्पादन 30 फीसद बढ़ा है। भारत में राज्य सरकारों को कोयला दो से तीन हजार रुपए प्रति टन मिलता है।

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उनके आरोपों के अनुसार, गुजरात सरकार ने अडानी के साथ किए गए समझौते की जांच नहीं की और उनके स्वामित्व में होने वाले कोयले के दामों की सत्यता की जाँच नहीं की। वे पूछते हैं कि क्या यह समझौता गुजरात की जनता के हित में है, या फिर यह एक बड़े ग्रुप की सुविधा के लिए हुआ फैसला है।

राज्यसभा सांसद के आरोपों के अनुसार गुजरात सरकार चुकाती रही अडानी का बिल

राज्यसभा सदस्य ने यह बयां देते हुए कहा कि 2018 से 2023 तक गुजरात सरकार, अडानी द्वारा दिए गए कोयले की कीमत का भुगतान करती रही। इस दौरान गुजरात सरकार ने अडानी की कंपनी को 13,802 करोड़ रुपये दिए, उल्लेखनीय है कि गुजरात मॉडल को बढ़ावा देने वाली गुजरात सरकार ने उस समय इंडोनेशिया में कोयले की कीमत की जांच आर्गस ग्लोबल कंपनी से नहीं की थी और इस बारे में गुजरात की  सरकार ने इस विषय में कोई शोध नहीं किया।

अडानी ने कोयले के खर्चे को लेकर जितना बिल तैयार किया, उसका उतना बिल सरकार चुकाती रही। दूसरी चिंता यह है कि जब भारत में कोयले का अधिक उत्पादन हो रहा है तो अडानी को कोयला आयात करने की आवश्यकता क्यों पड़ी। भारत में पिछले वर्ष की तुलना में कोयला उत्पादन में 30% की वृद्धि देखी गई है।

Sanjay Singh के आरोपों के साथ-साथ, उन्होंने यह भी प्रश्न उठाया कि क्या गुजरात सरकार द्वारा कोयले के दामों की जांच न करना उस समय के आधिकारिकों की लापरवाही और गोलमाल का परिणाम है जब देश में कोयले का उत्पादन बढ़ रहा है और बिजली के दामों में भी वृद्धि हो रही हैं।

यह विवाद भारतीय राजनीति में भी गहराईयों तक पहुँच गया है, जिससे gujarat sarkaar aur Adani ग्रुप के बीच तनाव बढ़ गया है। इस मामले में न्याय की बिना परेशानी के संज्ञान लिया जाना चाहिए, ताकि गुजरात की जनता के हित में सही निर्णय लिया जा सके।

निष्कर्ष

यह विवाद न केवल बिजली के दामों के बारे में है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न भी उठाता है कि कैसे सरकारें व्यापारिक ग्रुपों के साथ समझौते करती हैं और क्या वे जनता के हित में होते हैं। इस मामले में सत्यता और पारदर्शिता की आवश्यकता है, ताकि गुजरात की जनता को न्याय मिल सके।

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